प्रार्थना अत्यन्त उपयोगी है। अत्यन्त भाग्यशाली पुरुषको ही संकट आनेपर तथा अभाव आदि के समयपर यथार्थरुपसे प्रति प्रार्थना करनेकी प्रवृत्ति होती है। भगवानको जो अपना मानते है एवं सोचते है वे सर्वदा साथमें ही है एवं दुःख दूर करनेमें समर्थ है — इस बातको जिन्हों ने भीतरसे धारण कर लिया है वे ही अभावबोध भगवानको ज्ञापन कराते हैं। ज्ञापन कराते समय भगवत् सान्निध्यवोध उनको अवश्य होता है। अतः यह उनके विशेष कल्याण का कारण ही है। उनकी प्रार्थना भगवान तुरन्त ही पुर्ण नहीं करते, यह बात सच है, प्रार्थना स्वयं एवं जगत कल्याणार्थ न होनेपर यह सफलयोग्य नहीं है। परंतु प्रार्थना साथसाथ पुर्ण न होनेपर भी चिंता के द्वारा भी भगवत्संग लाभ किया जाता है। इससे जीवका चित्त शुद्ध होने लगता है एवं यह उनके लिए अत्यन्त कल्याणकारी होता है। जिनका चित्त निर्मल होता है उनके मनमें कोई प्रार्थना उदित होनेसे यह कल्याणात्मक ही होता है, एवं वह तुरंत ही पुर्ण भी होता है, इसमें भगवानका कोई पक्षपातदोष नहीं है,चित्त शुद्धि के ऊपरही यह सामान्यतः निर्भर करता है।
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